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Sunday 1 November 2015

मजबूरी-मुखौटे और जमीर !!



   मजबूरी-मुखौटे और जमीर !!

तोड़ दिया उसने वो दर्पण
बेबसी को दिखाता था
हारा हुआ बोझिल चेहरा
हमेशा उसे दिखाता था,
अब खरीद लिए कुछ
मनचाहे मुखौटे ! और
  एक नया दर्पण !
मौके के मुताबिक
उचित मुखौटा लगाकर
घर से वो निकलता है
मौके पर इस्तेमाल करने को
कुछ दूसरे मुखौटे भी
  अपने संग रखता है !
अलग-अलग मुखौटों से
समाज में स्वीकारा
और इज्जत पाता है,
नया दर्पण उसकी
    बेबसी को नहीं बल्कि__
रुत्बा बयान करता है,
मुखौटे से ढ़का लेकिन
इच्छित प्रतिबिम्ब दिखाकर
हमेशा खुश रखता है
मगर !! हर रोज
एक लम्बी आह भरकर
कल की तैयारी में
मुखौटे सिराहने रखकर
वो सो जाता है,
   लम्बे समय के बाद !!
मर चुका जमीर
फिर जीवित हो उठा है
उसको बार-बार पुकार रहा है
अंतर्द्वंद्व मे उलझा
   सो नहीं पा रहा है !!
          क्योंकि उसे ____
कल मुख्य अतिथि की
भूमिका निभानी है
मंच की शोभा बढानी है,
मुखौटों में रहकर समाज को
भ्रमित करने वाले लोगों से
समाज को जागृत
करने पर आयोजित
   संगोष्टी उद्घाटित करनी है !! 

... विजय जयाड़ा 01.11.15


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