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Tuesday 6 October 2015

कर्मपथ


*कर्मपथ*

  करना !!
   करुण__
व्यथित गान !!
ये शोभित नही
   मानव तुझे....
मनुज है
निरा पत्थर
नही,
जो
     स्थिर धरा पर.. ..
  जाग !!
कर्मपथ
तुझको
पुकार रहा,
पुरुषार्थ
बदलने भाग्य
फिर
   आमंत्रित कर रहा...
   बिसर न !!
कर्म और
पुरुषार्थ से
बनता भाग्य है..
त्याग,
कुंठित
नैराश्य गान,
कर्मवीरों पर
   शोभित नहीं !!
बढ़ निरंतर
कर्मपथ पर,
   विजय ध्वजा फहरा ... 

विजय जयाड़ा 


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