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Monday 5 October 2015

उत्साहित अडिग पथिक


उत्साहित अडिग पथिक 

लक्ष्य की चाह,
  असफलता की आह !!
उत्साह और श्रान्ति 
साथ लेकर, साध लक्ष्य
 ऊँचाइयों की चाह में,
अविराम निरंतर
  बढ़ता एक पथिक...
  थकता, ऊँचाइयों से हारता !!
तय ऊँचाइयों से निरंतर 
  ऊर्जा और उत्साह पाता एक पथिक...
दरकती एड़ियाँ, टपकता स्वेद 
कभी अलसाता... 
मंद बयार के आलिंगन से उत्साहित  
लक्ष्य सम्मोहन में बंधा 
   निरंतर बढ़ता एक पथिक.....
  लेकिन ये कैसी विडंबना  !
   घुमड़ती घटायें.. कड़कती बिजलियाँ !
   अँधियारा ही अंधियारा !! चौंध ही चौंध !
   दिखता न मार्ग न कोई सहारा !
दृश्यमान, सिर्फ और सिर्फ...
 उम्मीदों का दरकता पहाड़ !
आशाओं पर गिरती बिजलियाँ 
प्रारंभ किया .. जहाँ से सफ़र 
 वहीँ आ पहुंचता एक पथिक !
गिर-गिर कर उठना
 नियति है उसकी  !
नयी आस और अनुभवों से सज्जित
ऊंचाइयों को पाने की ललक 
फिर एक नए सफ़र की तैयारी में ..
    एक उत्साहित.... अडिग पथिक ....
^^ विजय जयाड़ा 
 

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