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Friday 18 September 2015

विडंबना !!



            ऋषिकेश से देहरादून जाते समय एक तरफ पकी हुई फसल को काटते किसान को देखा !!
     वहीँ आसमान में घुमड़ते बादलों का कारवां !! इस विचित्र स्थिति का शब्द चित्र उकेरने का प्रयास !!

   विडंबना !!

उमड़ते घुमड़ते मेघ
आच्छादित व्योम !
कहीं आह्लादित मन !
कहीं मुरझाता चितवन !
उपजता नैराश्य भाव
मन:स्थिति भोग की !
या कहूँ !!
धरती पुत्र की अंतर्वेदना !
या कहूँ, विडंबना !!

^^  विजय जयाड़ा/22.04.14

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