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Saturday 26 September 2015

जीवन संघर्ष


 

........जीवन संघर्ष .........

तोड़ धरती की कठोर परत
उत्साहित उमंगित नवांकुर,
सड़े सूखे पत्तों में दबा पाकर
  निराश हुआ, फिर आस जगी !
सूखे पत्तों को छत मान लिया,
डरता सहमा सा बढ़ा ऊपर
शूलों के झाड़ों से घिरा पाया!
कोमल अंगों को सहेजा बहुत
मगर काँटों को दया थी कहाँ!
छनी धूप पाने का रुख किया
  काँटों से बिधने का दुःख पाया !
जीवन संघर्षों से पार पाकर
नवांकुर, विटप बन बढ़ आया
कष्टों का अब अवसान हुआ,
फूल खिले और फल आये
देख, अपने भाग्य को कोस
कांटे किये पर पछताते रहे
माली काँटों को काट गया
कुछ नवांकुर और उग आये,
महका अब उपवन चहुदिश
   और जीवन सरगम साज बजा..

.... विजय जयाड़ा 


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