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Saturday 26 September 2015

..... उन्वान ...


.......... उन्वान ........

अंतस कुछ सुनसान सा था
शब्दों की गागर रीती थी
काँधे पर रख गागर
शब्दों के निर्झर पहुँच गया
निर्झर सूखा देख बहुत
असमंजस मन उदास हुआ
उद्विग्न देखता इधर-उधर
व्याकुल कारण तलाश रहा
ममनोदशा पर मेरी
बालक एक खिलखिला उठा
अलसाया अंतस मचल उठा
सूखा निर्झर भी बहने लगा
एक बयार बही पक्षी चहके
कविता को सरगम साज मिला
रीती गागर अब छलक गयी
गागर ले अब मैं लौट चला
कविता को उन्वान मिला.

..विजय जयाड़ा 

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