ad.

Wednesday 30 September 2015

खुद का अहसास


खुद का अहसास

घनघोर अंधेरा
पसरा देख
मन व्यथित कर
  घबरा जाते हैं !
नैराश्य भाव में
गल गल कर
अक्सर ..
  समर्पण कर जाते हैं !
शूरवीर
कब रुकते है!
अक्सर अंधियारों से
वे घिरते हैं !
अंधेरों पर विजयी
ध्वजा फहरा कर ही
  वे शूरवीर कहलाते हैं !
हवाओं से डर कर
दीपक की लौ
  समर्पण करती नहीं !
अंधेरी रातों में ही
प्रकाशित होकर जुगनु
   खुद का अहसास कराते हैं !!
 
... विजय जयाड़ा 




No comments:

Post a Comment