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Thursday 10 September 2015

दास्ताँ


दास्ताँ

मंद मंद पवन बहती
    
स्नेहिल सा ....
कुछ गाता है ये ,
सुकुमार नव पुष्प
दिखलाने की जिद में 

    झूमता ...
   भीतर चला आता है ये !!
बतकही के मोह में
पास खींचा
   चला जाता हूँ ...
   जन्म से..
पुष्पित होने की
   दास्ताँ सुनकर ..
    कुछ पल को ...
   इसमें ही रम जाता हूँ ..


.. विजय जयाड़ा


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