ad.

Monday 14 March 2016

समय




 समय

गतिमान हूँ सृष्टि में,
आदि न अंत
कोई समझ सका,
आगे न मुझसे बढ़ा कोई
न मुझको कोई लौटा सका.
सतयुग से कलयुग तक,
पोषण चार युगों का
करता मैं चला
दिग दिगांतर
अविराम मैं चला,
आलोच्य हूँ सदा से मैं,
अनहोनी पर कोसा गया,
निर्लिप्त और निस्वार्थ रहा
कर्मवीरों के संग
निरंतर चलता गया,
चलना निरंतर नियति मेरी
विराम द्योतक प्रलय का,
दिन अट्ठारह महाभारत चला
मैदान रण कुरुक्षेत्र का
जीवन अब महाभारत है
कुरुक्षेत्र खुद मानव बना
  मन बना चक्रव्यूह है
   कौन उसको तोड़ सका
     नित अभिमन्यु ..
मारे जाते हैं जहाँ
   वेद व्यास कौन बना
सेनाएं नहीं
कौरव पांडव सी
 युद्ध मौन अंतस बढ़ा
सृजन महाभारत फिर
गवाह महाभारत का बना.
अहंकार अस्त हुआ सदा
असहायों को बढ़ते देखा,
इतिहास समाया मुझमें
   सार उसका यही पाया...
अडिग रहा जो सत्य पर
     समय सारथी वही बना !!
 
विजय जयाड़ा

No comments:

Post a Comment