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Tuesday 26 January 2016

मिलन



>> मिलन <<

नर्म हसरतें
कल्पना की चिकनी
सतह पर
बहुत दूर तक
किनारे की चाह में
फिसलती चली गई
बिना रुके !
समय सरकता है
आगे बढ़ता है
भला उसे कौन
रोक सकता है!
किनारा ! हसरतों से बेपरवाह
लहरों के करीब
नर्म स्पर्श में खो गया!
हवाओं की
सरगम में रम गया
हसरतों से दूर
बहुत दूर होता गया !
हसरतें थक हार
बेढौल खुरदरे
पत्थर हो गई
रेत में धंस गई
किनारे की जिद में
स्थिर हो गई ! एक जगह !!
सोचकर !
किनारा उनके करीब
जरूर आएगा !!
सावन में !
उन्मादी लहरों के
कहर से जब
किनारा कराहेगा !
हवाओं का सरगम
भयानक स्वर बन
उसे डराएगा !
तब किनारा सिकुड़कर
हसरतों के पास
दौड़कर आएगा !!
दोनों का मिलन हो पायेगा !!
... विजय जयाड़ा 20.01.16

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