ad.

Tuesday 26 January 2016

योगी



...... योगी ......

घायल अचंभित
परोपकारी
      किंकर्तव्यविमूढ़ ! ...
कुछ सोचता
अब मौन है
किया उसने
  ऐसा पाप क्या !
जड़ें उसकी
   हुई मिट्टी विहीन हैं !!
योगी है वो
निर्विकार निश्छल
उखड़ मिट्टी में अब
मिल जाना है,
नहीं शिकायत
किंचित् उसे,
चाह अब
उसकी यही
मर के भी
    कुछ दे जाना है ...
.. विजय जयाड़ा


No comments:

Post a Comment