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Wednesday 20 January 2016

यादें बन जाते हैं कुछ लम्हे



यादें बन जाते हैं कुछ लम्हे
निशाँ हवाओं में रह जाते हैं
गुज़रा था मुसाफिर इधर से
रास्ते कुछ यूँ बयान करते हैं..
.. विजय जयाड़ा 


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