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Saturday, 2 April 2016

सोपान



                  स्वर्गीय पिता जी ने सेना और बाद में सिविल में सेवा की, धर्म, अध्यात्म, इतिहास और सम सामयिक विषयों पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी, साथ ही उस जमाने में भी पिता जी को फोटोग्राफी का बहुत शौक था। विवेकानंद जी के अध्यात्मिक दर्शन के अनन्य समर्थक थे.बात -बात पर विवेकानंद जी को संदर्भित किया करते थे . घर पर साधू-संतो ( ढोंगी नही) विद्वानों का आना जाना लगा रहता था, प्रसिद्ध समाजसेवी व सुधारक स्वामी मनमथन जी व पिता जी में गहरी आत्मीयता थी । कुतर्कों और तथ्यहीन तर्क पर भड़क जाते थे छुट्टी के दिन तो पूरे दिन व्यावहारिक आध्यात्मिक दर्शन पर चर्चा चलती थी. हम छोटे थे लेकिन पास बैठकर दिन भर सुनते रहते थे.घर पर कठोर अनुशासन हुआ करता था.        
             विद्वत सत्संग से सुनी चर्चा आज मेरे लिए ज्ञान के पुस्तकालय का काम करता है। पिता जी के बौधिक स्तर तक पहुँच पाना तो मेरे बस की बात नहीं लेकिन प्रयास अवश्य करता हूँ . अगर मन कि बात कहूँ तो उनके जाने के बाद आज घर में बौधिक रिक्तता महसूस होती है ।सादर नमन के साथ सामजिक सौहार्द पर पिता जी की भावनाओं को शब्द रूप देने का प्रयास .



सोपान
निज थाती की रक्षा खातिर
जाग रहा वो सदियों से है
अजेय हिमालय सो रहा है
उसको विश्राम कर लेने दो
पोषा गंगा-जमुना ने जिन शूरवीरों को
मातृभूमि पर तिरोहित वे हो गए
फिर से उपवन सींच रहीं वो
सतरंगी पुष्पों को खिल जाने दो
आदमियत से जुदा नहीं है मजहब
क्यों लोगों को भड़काते हो
गंगा-जमुनी तहजीबी वतन में
नफरत की चादर को
अब गंगा जल में धुल जाने दो
पहरेदार हिमालय जागा तो
भृकुटी प्रबल तन जायेगी...
गंगा- जमुनी जल की लहरें
तब तट मर्यादा पार कर जायेंगी
गद्दारों समझ लो हश्र अपना तब
मजहबी फसादों को क्यों उकसाते हो
आदमियत से बड़ा नहीं है मजहब
अब आदम को मिल जाने दो
धर्म साधन,साध्य एक है सबका
फिर पथ अलग क्यों अपनाते हैं
जिस पथ चलें सब मिलजुल कर
निर्माण उस पथ का हो जाने दो
आओ दिल से गले मिलें हम
मजहबी दीवारों को ढह जाने दो
आओ मिलकर कदम बढायें
तरक्की के सोपानों को लिख जाने दो.
.. विजय जयाड़ा 17/09/14

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