आस
एकाएक आया
वो नर्म हवा का झोका
उदास वापस जाती लहर के
ह्रदय में उठते उफान और
पीड़ा शांत करने की कोशिश में
घावों पर स्नेह लेपन करता
वो नर्म हवा का झोका
सोचने को मजबूर करता
समझौतों को विवश करता
नियति को बतलाता
लहर को तट के पास
फिर से जाने की मनुहार करता
वो नर्म हवा का झोका
आखिरकार !!
ह्रदय आवेगों को
काबू में लाने में कामयाब हुआ
लहर,तट से टकराहट से मिली
पीड़ा भूलने को मजबूर हुई
नियति को स्वीकारती
अतीत के कटु अनुभवों को भुलाती
लहर उठ चली
एक बार फिर तट की ओर
स्नेह मिलन की आस में
बदले व्यवहार की तलाश में
नर्म अहसास की आस में !!
पथरीले तट की ओर !!
.. विजय जयाड़ा 16/09/14
वो नर्म हवा का झोका
उदास वापस जाती लहर के
ह्रदय में उठते उफान और
पीड़ा शांत करने की कोशिश में
घावों पर स्नेह लेपन करता
वो नर्म हवा का झोका
सोचने को मजबूर करता
समझौतों को विवश करता
नियति को बतलाता
लहर को तट के पास
फिर से जाने की मनुहार करता
वो नर्म हवा का झोका
आखिरकार !!
ह्रदय आवेगों को
काबू में लाने में कामयाब हुआ
लहर,तट से टकराहट से मिली
पीड़ा भूलने को मजबूर हुई
नियति को स्वीकारती
अतीत के कटु अनुभवों को भुलाती
लहर उठ चली
एक बार फिर तट की ओर
स्नेह मिलन की आस में
बदले व्यवहार की तलाश में
नर्म अहसास की आस में !!
पथरीले तट की ओर !!
.. विजय जयाड़ा 16/09/14
No comments:
Post a Comment