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Saturday, 2 April 2016

आस




आस

एकाएक आया
वो नर्म हवा का झोका
उदास वापस जाती लहर के
ह्रदय में उठते उफान और
पीड़ा शांत करने की कोशिश में
घावों पर स्नेह लेपन करता
वो नर्म हवा का झोका
सोचने को मजबूर करता
समझौतों को विवश करता
नियति को बतलाता
लहर को तट के पास
फिर से जाने की मनुहार करता
वो नर्म हवा का झोका
आखिरकार !!
ह्रदय आवेगों को
काबू में लाने में कामयाब हुआ
लहर,तट से टकराहट से मिली
पीड़ा भूलने को मजबूर हुई
नियति को स्वीकारती
अतीत के कटु अनुभवों को भुलाती
लहर उठ चली
एक बार फिर तट की ओर
स्नेह मिलन की आस में
बदले व्यवहार की तलाश में
नर्म अहसास की आस में !!
पथरीले तट की ओर !!
.. विजय जयाड़ा 16/09/14
 
 


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