ad.

Saturday, 2 April 2016

जीवन



जीवन

नम मंद शीतल बयार
फिर थपेड़ों भरा शुष्क मौसम
कंपकपाती शीत और
फिर मस्त बसंत का मौसम
निरंतर अंधेरों के बाद
एकाएक उजालों का आगमन
सुखद अहसास दे जाता है
ऋतु चक्र से नियंत्रित
चलायमान वृहत सृष्टि
बसंत, ग्रीष्म,वर्षा
शरद, हेमंत, शिशिर अनुकूलन में
स्वयं को सहजता से
साधता है जीव
जिजीविषा में हर परिवर्तन को
सहजता से स्वीकारता
इतिहास रच जाता है जीव
या फिर निराशा व कुंठा में
पराभव को प्राप्त हो जाता है जीव
फिर जीवन की कठिनाइयों से
क्यों टूट जाता है जीव !!
जीवन चक्र से स्वयं को अलग कर
पराभव को क्यों स्वीकारता है जीव !!

..विजय जयाड़ा 09/09/14

No comments:

Post a Comment