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Thursday, 7 April 2016

काला कागा


 काला कागा

काला कागा डाल पर बैठा
कांव-कांव चिल्ला रहा,
गर्मी से बेहाल बेचारा
  पूरा मुंह खोले हाँफ रहा ! 

तिनके पत्ते उठा रहा है
तार टहनियाँ बटोर रहा,
दूर किसी पेड़ पर जाकर
  घोंसला अपना बना रहा .


कांव-कांव कागा की सुनकर
दोस्त भी उसके आ गए,
हरे नीम आ बैठे सारे
  कागा कागा छा गए !


कांव कांव करता कागा जब
दादी बहुत चिढ जाती है,
डाल पर बैठे काले कागा को
  लाठी दिखा के भगाती है !


कागा ! कागा ! लौट के आना
दादी को हम मनाएंगे,
लेकिन तुम चुप रहना बिलकुल
   हम रोटी रोज़ खिलाएंगे !!
 विजय जयाड़ा 05.06.16


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