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Saturday, 2 April 2016

निर्झर




निर्झर

गोद में बैठा शिशु निर्झर
बालहठ माँ से कर रहा,
कूदकर गोद से बार-बार
उन्मुक्त विचरण उसे सुहा रहा.
क्रूर पाषणों से टकराने का हश्र
माँ वसुधा समझा रही,
खारे समुद्र से मिलने पर,
गुम होने का भय दिखा रही.
अंत बाल हठ के सम्मुख,
ममता समर्पण कर लेती है,
शिशु बिछोह का कष्ट भुला
माँ व्याकुल सी विदा लेती है.
कल कल निनाद करता निर्झर
अठखेलियाँ कर बढ़ जाता है,
पाषाणों से टकरा कर भी
सतरंगी उज्जवल छवि बिखराता है.
नित नए पड़ावों से गुज़र-गुज़र,
जीवों की प्यास बुझाता है.
चिंता नहीं उसको खारे समुद्र में समा,
अस्तित्व समाप्त हो जाने की.
चाह, फिर बादल बन बरस-बरस,
जीवों को नवजीवन दे जाने की ..
^^ विजय जयाड़ा 03/08/14

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