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Saturday, 2 April 2016

मानवता का फिर से प्रादुर्भाव हो..



मानवता का प्रादुर्भाव हो..

नयी स्फूर्ति
नव चेतना के आलिंगन में
अभिवादन और अभिनन्दन हो
प्रस्फुटन धवल विचारों का,
सीमित जिह्वा तक न रहकर
मानव् तन में हृदयस्थ हों,
गिरते जीवन मूल्यों के कालखंड में !!
नित्य कर्मों में भी उनका अंशदान हो.......

मस्तिष्क से मन हो न पोषित
मस्तिष्क,नैसर्गिक मनोभावों से सराबोर हो
हो मानव, मानवता से अभिमंत्रित
विचलित मन हो स्थिरता
मलिन विचारों का अवसान हो....

विगत वर्ष से हुआ वर्ष कम
मनुजता में उत्कृष्टता पाने का
समय हुआ कम कार्य विकट है !!
अब नही समय गंवाने का !!
स्वर्ग, धरा पर लाना है तो
नूतन वर्ष की मधुर बेला पर
शिथिल तारों को अंतर्मन के झंकृत कर
सत्यपथ पर दृढ संकल्पी बन
आया समय उचित मार्ग अपनाने का

हो महिमा मंडन का खंडन
यथार्थ का संज्ञान हो
छोड़ संचित पूर्वाग्रहों का दामन
विचारों का सतत परिष्कार हो
छोड़ अधम की राह मखमली
सत्यपथ का अवलंबन हो....

कटुता, स्वार्थ रहित हो जनजीवन
समरसता स्वीकार हो
धर्म,जाति,क्षेत्र,भाषा भेद भुलाकर
मानवता का फिर से प्रादुर्भाव हो .......

^^ विजय जयाड़ा

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