......मातृभाषा हिंदी .....
माँ के आँचल छाँव तले
ममतामय संसार मिला
उम्र बढ़ी गोद छूटी
भाषाओँ के झंझावात में
मातृभाषा प्रथम संवाद बनी
सुख दुःख जीवन साथी हैं
सुख में सब आन मिले
साजों पर स्वर नाच उठे
परभाषा अपनाकर हमको
तब खुद पर अभिमान हुआ !
दुःख में सब बिखर गए
साजों से स्वर भी रूठ गए
आस रही न तब मन में
घनघोर निराशा छाने लगी
तब उमड़े भावों के जल से
भाषा तटबन्ध टूट गए
ईश्वर आस बची मन में
आलम्ब दिया मातृभाषा ने
परभाषा तजकर तब हमने
मातृभाषा को अपनाया
भाषाओं के जाल से निकल
हिंदी को ही अपनाया
सूझी न दूजी भाषा कोई
मातृभाषा में संवाद किया
दुखड़ा सुनाया ईश्वर को
हिंदी में ही संवाद किया !
मातृभाषा हिंदी अपनी
कहने लिखने में
हम क्यों सकुचाते हैं
माँ के ममतामय___
आँचल छाँव से हम
क्यों ! खुद को दूर ले जाते हैं !
ममतामय संसार मिला
उम्र बढ़ी गोद छूटी
भाषाओँ के झंझावात में
मातृभाषा प्रथम संवाद बनी
सुख दुःख जीवन साथी हैं
सुख में सब आन मिले
साजों पर स्वर नाच उठे
परभाषा अपनाकर हमको
तब खुद पर अभिमान हुआ !
दुःख में सब बिखर गए
साजों से स्वर भी रूठ गए
आस रही न तब मन में
घनघोर निराशा छाने लगी
तब उमड़े भावों के जल से
भाषा तटबन्ध टूट गए
ईश्वर आस बची मन में
आलम्ब दिया मातृभाषा ने
परभाषा तजकर तब हमने
मातृभाषा को अपनाया
भाषाओं के जाल से निकल
हिंदी को ही अपनाया
सूझी न दूजी भाषा कोई
मातृभाषा में संवाद किया
दुखड़ा सुनाया ईश्वर को
हिंदी में ही संवाद किया !
मातृभाषा हिंदी अपनी
कहने लिखने में
हम क्यों सकुचाते हैं
माँ के ममतामय___
आँचल छाँव से हम
क्यों ! खुद को दूर ले जाते हैं !
.. विजय जयाड़ा 14/09/14
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