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Saturday 14 May 2016

शब्द




शब्द...मंदाग्नि ग्रसित
प्रखरता निज खो रहे !
उजास अवसान जान
क्यों शिथिल से हो रहे !
उठेगा ज्वार कल्पित
तन्द्रा हिमालय तोड़ेगा
शब्दों का भूचाल तब
जन सैलाब.....बनकर
एक...इंकलाब लाएगा

.... विजय जयाड़ा


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