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Tuesday 17 May 2016

दिल्ली बिटि अयुँ छ !!



दिल्ली बिटि अयुँ छ !!

दिल्ली बिटि अयुँ छ
गौं मा शान दिखौणु छ
कभि कपड़ों कु ब्रांड __
कभि कीमत बतौणु छ !
लगायुं छ काळु चश्मा
गौं मा हीरो बण्युँ छ
बढ़ीं चढ़ीं छुईं लगौणु
बस फट्टि मान्नु छ !
देखा वेकि चाळ ढ़ाळ
विदेशी बण्युँ छ
सेवा सौंळि छोड़िक्
हाय हैल्लो कन्नु छ !
नाता रिश्ताों की__
बात नि करा
सेकुलर बण्युं छ
दाना ज्वान सब्यों तैं
आंटी अंकल भट्याणु छ !!
दिल्ली बिटि अयुँ छ
गौं मा शान दिखौणु छ
कभि कपड़ों कु ब्रांड __
कभि कीमत बतौणु छ !

                                                                 .. विजय जयाड़ा
  
                 दरअसल एक गाँव में शादी में गया था वहां आँखों देखी को शब्द रूप में लिखने का मन हुआ ! रचना में उन लोगों का व्यवहार वर्णित है... जिनकी एक-दो पीढ़ी महानगरों में आकार बस गई थीं उन्होंने बहुत संघर्ष किया. अब उनकी दूसरी तीसरी पीढियां यहाँ के वातावरण में रच बस गयी हैं.. समय के साथ वे अब संसाधन संपन्न भी हो गए.कुछ वर्तमान पीढ़ी के लोग ही नहीं बल्कि मेरी उम्र के कुछ लोग भी जब शादी, पूजा आदि कार्यों के अवसरों पर अपने गाँव पहुँचते हैं तो सीमित संसाधनों में भी संतुष्ट, गाँव वासियों पर अपनी ओछी हरकतों और बढ़ी-चढ़ी बातों से महानगर की चकाचौंध और अपनी सम्पन्नता की धौंस जमाना चाहते हैं.

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