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Saturday 2 April 2016

विलग पात



विलग पात

असमय डाल से
विलग पत्ते की मानिंद
इधर-उधर भटकता
पत्थरों में लुढ़कता
सूखकर बिखरने से
बचने की कोशिश में
कुछ पाकर संतुष्ट हो
नम हो सो जाता
सुबह फिर तपिश से मुकाबला
बिखरने का भय !!
बिखरने से बचने के
जतन में कूड़े के
एक ढेर से दूसरे ढ़ेर तक
अस्तित्व बचाने की जिद में
नमीं की तलाश में ..
भीड़ से अलग
बचपन से कोसों दूर
दुनिया से बेखबर
ढ़ेर में कुछ टटोलता
वो मासूम सा बच्चा !!
डाली से असमय विलग हरा पात !!
..विजय जयाड़ा 22/09/14


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