..... आलम्बन .....
मन के शांत दरिया में
सहसा कुछ ऊपर उठा !
देख मन स्पंदित हुआ
आलम्ब अंतस को मिला,
मगर देखते ही देखते
नयी धारा उसमें आ मिली !
बहा ले गयी साथ कुछ..
बहकर खारे में जा मिला !
ठहरा था,अब तक बहाव में जो ..
ग्रास बड़ी मछलियों का बनकर
काल कवलित होता गया !
प्रस्तर प्रहार झेलता..
तट किनारे कुछ जा लगा !
श्रांत क्लांत मन पाने को
व्याकुल उसकी तरफ बढ़ा ..
संतोष कर पाकर उसे
तब मन स्थिर हुआ !..
खारे और मछलियों से
बचा कर रख उसे...
अंतस ...
आलाम्बित उस पर हुआ ...
सहसा कुछ ऊपर उठा !
देख मन स्पंदित हुआ
आलम्ब अंतस को मिला,
मगर देखते ही देखते
नयी धारा उसमें आ मिली !
बहा ले गयी साथ कुछ..
बहकर खारे में जा मिला !
ठहरा था,अब तक बहाव में जो ..
ग्रास बड़ी मछलियों का बनकर
काल कवलित होता गया !
प्रस्तर प्रहार झेलता..
तट किनारे कुछ जा लगा !
श्रांत क्लांत मन पाने को
व्याकुल उसकी तरफ बढ़ा ..
संतोष कर पाकर उसे
तब मन स्थिर हुआ !..
खारे और मछलियों से
बचा कर रख उसे...
अंतस ...
आलाम्बित उस पर हुआ ...
.. विजय जयाड़ा 03.06.15
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