........ || पूनम || ........
दिन चार बसंत छलावा है
ग्रीष्म शिशिर से बैर न कर
जीवन के इस छलावे में
अपनों में ही तू भेद न कर.....
ग्रीष्म शिशिर से बैर न कर
जीवन के इस छलावे में
अपनों में ही तू भेद न कर.....
जीवन के सफर में हमराही
बहुत मिले और बिछुड़ गए,
सदा साथ दिया यहाँ किसने !
निर्लिप्त रह विषय भोग तू कर......
जीवन बेमोल अमोल मिला
ईमान क्यों व्यर्थ गंवाता है
ईर्ष्या और द्वेष में पड़ कर तू
जीवन का मोल यूँ ही न घटा ....
जीवन पूनम का चाँद यहाँ
अमावस निश्चित ही आनी है
सिमटे पूनम न व्यर्थ यूँ ही !
निज जीवन को सार्थक तू कर......
..विजय जयाड़ा
बहुत मिले और बिछुड़ गए,
सदा साथ दिया यहाँ किसने !
निर्लिप्त रह विषय भोग तू कर......
जीवन बेमोल अमोल मिला
ईमान क्यों व्यर्थ गंवाता है
ईर्ष्या और द्वेष में पड़ कर तू
जीवन का मोल यूँ ही न घटा ....
जीवन पूनम का चाँद यहाँ
अमावस निश्चित ही आनी है
सिमटे पूनम न व्यर्थ यूँ ही !
निज जीवन को सार्थक तू कर......
..विजय जयाड़ा
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