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Friday 28 August 2015

पूनम ...


........ || पूनम || ........

दिन चार बसंत छलावा है
ग्रीष्म शिशिर से बैर न कर
जीवन के इस छलावे में
    अपनों में ही तू भेद न कर.....
जीवन के सफर में हमराही
बहुत मिले और बिछुड़ गए,
  सदा साथ दिया यहाँ किसने !
    निर्लिप्त रह विषय भोग तू कर......

जीवन बेमोल अमोल मिला
ईमान क्यों व्यर्थ गंवाता है
ईर्ष्या और द्वेष में पड़ कर तू
     जीवन का मोल यूँ ही न घटा ....

जीवन पूनम का चाँद यहाँ
अमावस निश्चित ही आनी है
सिमटे पूनम न व्यर्थ यूँ ही !
    निज जीवन को सार्थक तू कर......


..विजय जयाड़ा


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