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Saturday 15 August 2015

यादों का झुरमुट



....यादों का झुरमुट ....

यादों का बिखरा झुरमुट
हमेशा मजबूर करता है..
वर्तमान में ठहर जाने को,
पुरानी यादों की बयार
जब कभी स्पर्श करती है
पत्तियां फड़फड़ाती हैं ,
मानों अलट-पलट कर
उनमे लिखी यादों की इबारत
पढवाने को व्याकुल हैं
शाखें भी झुक - झुक कर
गवाही को आतुर लगती हैं !! ..
मगर ! छितराई यादें हैं.. कि
मिलकर सिमटती ही नहीं !!
तंग बयार !! तेज झोंका बन
बिखरे झुरमुट से टकराती है,...
 शाख और पतियाँ समवेत...
मजबूर कर देती हैं
यादों में खो जाने के लिए
दूर छूट जाता है वर्तमान !!
परत दर परत उघड़ने लगती हैं
धुंधलकी यादों की परतें ..
पहुंचा देती हैं जीवंत अतीत में
जहाँ हर पात्र ... हर चीज
आतुर हैं !! स्पर्श पाने के लिए
तभी दौड़ा चला आता है वर्तमान
ठहर जाता है बयार का झोंका !
बिखरने लगता है यादों का झुरमुट
नम हो जाती हैं बिछुड़ती पलकें,
शायद ...
बिखरे झुरमुट को नम रखने के लिए !
 
.. विजय जयाड़ा 04.06.15
 

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