ad.

Monday 29 August 2016

बादलों का समन्दर




~बादलों का समन्दर~

रूई सी नर्म
फाहों को उठकर
बादल बनते मैंने देखा
अनेक से एक___
हुए जब बादल
लहराता समन्दर देखा !
दूर दूर से बादल आते
झूमते हाथी जैसे दिखते
बादलों से
ऊपर जाकर तब
बादलों का समन्दर देखा !
उठती जल वाष्प
धरती से ऊपर
व्यष्टि को समष्टि होते देखा
उड़ते बादल
जब जब मिलते
बिछड़ों का आलिंगन देखा
उमड़ घुमड़
मस्ती में लहराता
अजब एक समन्दर देखा !
मणिकूट
पर्वत पर बैठा
उजला घना समन्दर देखा !
धरती से ऊपर__
नील गगन के नीचे
उड़ता नर्म बिछौना देखा
नर्म बिछौने
में जा बैठूँ
सपना एक सलौना देखा !
बादल बरसे
तन्द्रा टूटी
विहित में निहित समाहित देखा
प्यास बुझाने
आया सबकी
बादलों का समन्दर देखा !!

... विजय जयाड़ा 


     मेरे छुटकु कैमरे से बादलों के लहराते-बलखाते दूर तक फैले बादलों के समंदर की रोमांचक तस्वीर मणिकूट पर्वत, कोठार गाँव, ऋषिकेश, से ली गयी है

No comments:

Post a Comment