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Saturday 11 July 2015

पाती

__\\पाती //__
 
दिवस गए
कई रैन गयी
मौल्यार बसंत भी
बीत गया
खिले फूल भी
विरह में मुरझा गए
तेरे लौट के
आने के वादे
नहीं पूरे हुए
तपती धूप
बाट निहारी तेरी
शीत से अब तक
तकते तकते
आँखे थकी अब मेरी
पर तू निर्मोही
आया नहीं
अब तक पलट कर
राह मेरी ..
दिवस गए
कई रैन गयी
मौल्यार बसंत भी
बीत गया
खिले फूल भी
विरह में मुरझा गए
तेरे लौट के
आने के वादे
नहीं पूरे हुए
तपती धूप
बाट निहारी तेरी
शीत से अब तक
तकते तकते
आँखे थकी अब मेरी
पर तू निर्मोही
आया नहीं
अब तक पलट कर
राह मेरी ..
उलाहनों भरी
पाती पढ़कर !
सोया जीवन
फिर मचल उठा
रोके नहीं अब
कोई मुझको..
रुकने नही देते
पग मुझको,
अब दौड़ चला
मैं निकल पड़ा
पर्वत से मिलने
दूर निकल चला..

.. विजय जयाड़ा 23.06.15

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