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Wednesday 13 July 2016

बिखर जाते हैं हम




बिखर जाते हैं हम
आगे बढने की चाह में !
मगर जन्नत वहीँ हैं
  जहाँ रहते हैं एक ही छाँव में ..
.. विजय जयाड़ा

           गावों में भी प्राय: पाता हूँ कि जिन लोगों के घरों में सम्पन्नता दस्तक दे देती है वे लोग गाँव की ही परिधि में लेकिन मूल घरों से दूर, यहाँ तक कि निर्जन और सुनसान में अपना आशियाना बना लेते हैं !!
कारण कुछ भी हो सकते हैं !!
         महर गाँव, उत्तरकाशी, उत्तराखंड में अभी भी लोग एक दूसरे के बहुत करीब बसे हुए हैं.. महर गाँव से उठने वाली एकता की सोंधी महक बहुत दूर से ही महसूस की जा सकती है। यह महक राह चलते जब मैंने भी महसूस की तो बाइक रोक कर इस गाँव की तस्वीर क्लिक करने का लोभ संवरण न कर सका .


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