सड़क
ऊंची नीची कच्ची पक्की
ऊबड़ - खाबड़
कहीं संकरी__
कहीं चौड़ी सड़क पर
कभी संभलकर
कभी सरपट दौड़ते हैं
दो राहे तिराहे चौराहे
संशय में डालते हैं
पूछते पुछाते
सावधानी बरतते
हम आगे बढ़ जाते हैं
किसी सड़क से
क्यों परहेज !
आज नहीं तो कल
जानी अनजानी सड़क को
मंजिल तक का
हमसफ़र बनना है
मंजिल तक पहुंचाना है
इसलिए मुझे
ऊंची नीची, कच्ची पक्की
संकरी चौड़ी, उबड़ खाबड़
हर सड़क से मुहब्बत है
मगर___
घर तक पहुंचाती है
जो सड़क !
उससे मुझे बेपनाह मुहब्बत है..
ऊबड़ - खाबड़
कहीं संकरी__
कहीं चौड़ी सड़क पर
कभी संभलकर
कभी सरपट दौड़ते हैं
दो राहे तिराहे चौराहे
संशय में डालते हैं
पूछते पुछाते
सावधानी बरतते
हम आगे बढ़ जाते हैं
किसी सड़क से
क्यों परहेज !
आज नहीं तो कल
जानी अनजानी सड़क को
मंजिल तक का
हमसफ़र बनना है
मंजिल तक पहुंचाना है
इसलिए मुझे
ऊंची नीची, कच्ची पक्की
संकरी चौड़ी, उबड़ खाबड़
हर सड़क से मुहब्बत है
मगर___
घर तक पहुंचाती है
जो सड़क !
उससे मुझे बेपनाह मुहब्बत है..
..... विजय जयाड़ा
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