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Tuesday, 17 May 2016

हासिल नही करनी ऐसी "श्रेष्ठता" !



  हासिल नही करनी ऐसी "श्रेष्ठता" !

पुष्प आच्छादित रमणीक मनोरम
अल्हड़ हरीतिमा चहुँ ओर
प्रसन्न मन बलखाती पर्वत श्रृंखलाएं.
वृक्षों पर खग नीड़
कल-कल बहते जल प्रपात
जीवन प्रदायक और संरक्षक
पर्वत श्रृंखलाएं अनुपम नयनाभिराम !!
सहस्तित्व का देती सन्देश,
जहाँ जल, जल ही रहकर
बुझाता है प्राणियों की तृष्णा,
वृक्ष पंछियों आसरा
मिलजुल कर करते हैं
तूफानों का सामना !!
सुनसान हिमाच्छादित
संवेदना रहित
वह जड़ "उच्च शिखर",
जहाँ जल,बन "कठोर हिमखंड",
तृष्णा शांत करने में है असमर्थ !!
मिलता नहीं जीवों को आसरा.
वृक्षों और पक्षियों के कलरव का अभाव !!
मिलती है सदा संवेदना रहित
भयावह नीरवता और जड़ता
विवश है वह जड़ " उच्च शिखर " !!
तूफानों से जूझने को अकेला,
हासिल नही करनी ऐसी "श्रेष्ठता" !!!
जहाँ रहना और जूझना पड़े अकेला...
बन न सकूँ किसी का सहारा !!!!
मुझे तो बनाना है
रमणीक मनोरम पर्वत श्रंखला !! 

^^ विजय जयाड़ा 18.05.14

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