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Sunday, 29 May 2016

मन की अभिलाषा



मन की अभिलाषा

महलों की किलकारी न सही , 
भूखे शिशु का रूदन स्वर बन
परहेज़ तुझे हो घुँघरू से तो 
अबलाओं का स्वर तू बन
न भाग्य भरोसे बैठ कभी ,
कृषकों का मधुर गीत तू बन
आँगन में खिलता पुष्प नहीं ,
घने वृक्ष का स्वर तू बन
कायर के शब्द का मोल कोई ? 
रणवीरों की हुंकार तू बन
विश्वास यदि श्रम पर तुझको , 
तो मजदूरों का स्वर तू बन
हो सरल झूठ का मार्ग मगर
 तू सदा सत्य की वाणी बन
गर माँ का स्वर बनना चाहे , 
भारत माता का स्वर तू बन
पिंजरे में पंछी क्या गाये , 
उन्मुक्त विहग का गीत तू बन
सूखी धरती जब प्यासी हो , 
शीतल वर्षा का स्वर तू बन
हो कोई दुखी संतप्त यदि , 
तो अपनेपन का स्वर तू बन
अपनी वाणी को शब्द तो दे , 
अब तोड़ मौन का ये बंधन
धीरज, आशा और नव उमंग का 
गौरवशाली स्वर तू बन

^^^ विजय जयाड़ा 24.05.13


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