बदले हुए ज़माने में,तरक्की क्या खूब हुई है !
मज़हब कई थे मगर, अब सिर्फ दो ही वो है !
मज़हब कई थे मगर, अब सिर्फ दो ही वो है !
इक तरफ पसरी है मज़ल्लत भरी मुफलिसी ,
शानो शौकत से लवरेज, सरमायेदारी कहीं है !
शानो शौकत से लवरेज, सरमायेदारी कहीं है !
रोटी कहीं पूजा , तो कहीं इबादत यही है,
जुल्मों से अब होते ..... रोज़ सज़दे कहीं हैं !
जुल्मों से अब होते ..... रोज़ सज़दे कहीं हैं !
^^ विजय जयाड़ा 30-05-14