>> मिलन <<
नर्म हसरतें
कल्पना की चिकनी
सतह पर
बहुत दूर तक
किनारे की चाह में
फिसलती चली गई
बिना रुके !
समय सरकता है
आगे बढ़ता है
भला उसे कौन
रोक सकता है!
किनारा ! हसरतों से बेपरवाह
लहरों के करीब
नर्म स्पर्श में खो गया!
हवाओं की
सरगम में रम गया
हसरतों से दूर
बहुत दूर होता गया !
हसरतें थक हार
बेढौल खुरदरे
पत्थर हो गई
रेत में धंस गई
किनारे की जिद में
स्थिर हो गई ! एक जगह !!
सोचकर !
किनारा उनके करीब
जरूर आएगा !!
सावन में !
उन्मादी लहरों के
कहर से जब
किनारा कराहेगा !
हवाओं का सरगम
भयानक स्वर बन
उसे डराएगा !
तब किनारा सिकुड़कर
हसरतों के पास
दौड़कर आएगा !!
दोनों का मिलन हो पायेगा !!
... विजय जयाड़ा 20.01.16
कल्पना की चिकनी
सतह पर
बहुत दूर तक
किनारे की चाह में
फिसलती चली गई
बिना रुके !
समय सरकता है
आगे बढ़ता है
भला उसे कौन
रोक सकता है!
किनारा ! हसरतों से बेपरवाह
लहरों के करीब
नर्म स्पर्श में खो गया!
हवाओं की
सरगम में रम गया
हसरतों से दूर
बहुत दूर होता गया !
हसरतें थक हार
बेढौल खुरदरे
पत्थर हो गई
रेत में धंस गई
किनारे की जिद में
स्थिर हो गई ! एक जगह !!
सोचकर !
किनारा उनके करीब
जरूर आएगा !!
सावन में !
उन्मादी लहरों के
कहर से जब
किनारा कराहेगा !
हवाओं का सरगम
भयानक स्वर बन
उसे डराएगा !
तब किनारा सिकुड़कर
हसरतों के पास
दौड़कर आएगा !!
दोनों का मिलन हो पायेगा !!
... विजय जयाड़ा 20.01.16
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