अनुभूति
ad.
Wednesday, 20 January 2016
यादें बन जाते हैं कुछ लम्हे
यादें बन जाते हैं कुछ लम्हे
निशाँ हवाओं में रह जाते हैं
गुज़रा था मुसाफिर इधर से
रास्ते कुछ यूँ बयान करते हैं..
.. विजय जयाड़ा
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment