||| अनहद नाद |||
घर्षण ध्वनियों को
शब्द रूप देकर
कविता में नहीं
उतारना चाहता !!
आहत नाद से इतर
अन्तस् में उठती
ध्वनियों को शब्दों में
ढालना चाहता हूँ ,
आहत नाद भटकाता है !
तृष्णा जगाता है !
मन में इच्छाओं और
वासनाओं का
उपद्रव भड़काता है !
पहुँच जाता हूँ
उस संसार मे
जहाँ मन अटकता नहीं
वहां ध्वनियाँ हैं
लेकिन घर्षण रहित !!
यही है अनहद नाद...
भटकती चित्त वृत्तियों को
नियंत्रित करती
ध्वनियों का संसार !!
अंतस संगीत संसार में
वहीँ रम जाता हूँ
फिर ध्वनियों को
शब्दों का जामा पहनकर
कविता लिख देता हूँ
बस एक शब्द.... " ॐ " ,
बार- बार लिखकर
कविता पूरी कर देता हूँ.
शब्द रूप देकर
कविता में नहीं
उतारना चाहता !!
आहत नाद से इतर
अन्तस् में उठती
ध्वनियों को शब्दों में
ढालना चाहता हूँ ,
आहत नाद भटकाता है !
तृष्णा जगाता है !
मन में इच्छाओं और
वासनाओं का
उपद्रव भड़काता है !
पहुँच जाता हूँ
उस संसार मे
जहाँ मन अटकता नहीं
वहां ध्वनियाँ हैं
लेकिन घर्षण रहित !!
यही है अनहद नाद...
भटकती चित्त वृत्तियों को
नियंत्रित करती
ध्वनियों का संसार !!
अंतस संगीत संसार में
वहीँ रम जाता हूँ
फिर ध्वनियों को
शब्दों का जामा पहनकर
कविता लिख देता हूँ
बस एक शब्द.... " ॐ " ,
बार- बार लिखकर
कविता पूरी कर देता हूँ.
.. विजय जयाड़ा 05.11.15
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