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Tuesday, 3 November 2015

अंतर्मन



अंतर्मन

गऊ सानिध्य
न मिल पाना
महानगरीय मजबूरी है
       लेकिन ___
कोई ये मान न ले
  गऊ से हमारी दूरी है !
 
धर्म ग्रन्थों ने मिलकर
गऊ का महत्व
स्वीकारा है
फिर गऊ पर
   क्यों !!
   होता इतना हंगामा है !!

दूध पिया
जननी का हमने
ममता का माँ हम नाम धरें
दूध पिया
गौ का भी हमने
   क्यों ममता से इनकार करें !!

इंसान को दूध
पिलाया गऊ ने
मजहब का नहीं भेद किया,
फिर हमने
गऊ को आपस में
   मजहब में क्यों बाँट दिया !!

बहुत हुई
   गौ धन पर सियासत !!
इस पर अब लगाम करें,
दूध का कर्ज
     अन्तर्मन से चुकाएँ___
   जीवन अपना धन्य करें...
... विजय जयाड़ा

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