||बोलता मौन||
अलमस्त गज
उत्तान शिखर
हरीतिमा की
ओट में __
कल कल निनाद
शील गंगा
सहज अल्हड़
अंठखेलिया स्वरुप में__
एकांत
शांत निर्मल
छवि अलौकिक
ठौर मन यहीं
पा लेता है,'
अनुत्तरित कुछ
रह गया
जीवन सफ़र में
जवाब निश्छल,
मन यहाँ ____
मौन ही यहाँ पा लेता है..
.. विजय जयाड़ा
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