उद्गार
साथियों, मित्रवर, विजय जयाड़ा जी के लिए मन के कुछ उद्गार व्यक्त करना चाहता हूं,समर्पित हैं
विजय जयाड़ा धीरमति, होते नहीं अधीर।
देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर।।
एक घड़ी आधी घड़ी, आधे तें पुनि आध।
विजय जयाड़ा साथ तो, होवे कौन व्याध।।
सूक्ष्म चितेरे प्रकृति के, अनुसंधानी आप।
व्यापक सोच बनाई है, नहीं बनाई ‘खाप’।।
शिक्षा के संधान में, लगे रहें दिन- रात।
कैसे नवयुग आएगा, करते रहते बात।।
भूतकाल के द्वार पर, पढ़ते हैं इतिहास।
नई सोच नई व्याख्या, रहती इनके पास।।
सौम्य सरल मितभाष हैं, मृदुल हास्य की खान।
मित्र मंडली में सदा, निरभिमान श्रीमान।।
रुचिकर तर्क प्रमाण से, लिखते हैं इतिहास।
फोटोग्राफी में कुशल, देवभूमि का वास।।
सादर..
रचना :अनुपम पाण्डेय
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