शहर वही है मगर बदला बदला सा क्यों है !
इंसान भी वही मगर जुदा-जुदा सा क्यों हैं !
मस्त मगन वही भजन सुर वही अज़ान का !
मगर सुर बंटे हुए चमन वीरान सा क्यों है !
हंसी उलास तीज त्योहार सब अतीत से ,
मगर दिलों को बाँटती दीवारें बन गई क्यों हैं !!
.. विजय जयाड़ा
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