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Saturday, 20 February 2016

शहर वही है मगर ....



  शहर वही है मगर बदला बदला सा क्यों है !
  इंसान भी वही मगर जुदा-जुदा सा क्यों हैं !

  मस्त मगन वही भजन सुर वही अज़ान का !
  मगर सुर बंटे हुए चमन वीरान सा क्यों है ! 

  हंसी उलास तीज त्योहार सब अतीत से ,
   मगर दिलों को बाँटती दीवारें बन गई क्यों हैं !! 

.. विजय जयाड़ा

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