दरकता पहाड़ !
पहाड़ के सीने पर
चलते फौलादी औजार
निरंतर प्रहार !
झेलता बेबस पहाड़
क्रोधित शिव तांडव
विपदा बार-बार
निरीह बनते
प्रकोप के शिकार
फटते बादल
उफनती नदियां
गाड गधेरों में सैलाब
दरक रहा है पहाड़ !
हर तरफ चीख पुकार
भविष्य अंधकार
चहुँदिश हाहाकार
वातानुकूलित कक्षों में गोष्ठियां
सरकारी इमदाद बार बार
पीड़ित बेघर बेज़ार !
" कारिंदों " की चांदी हर बार
चर्चा वही बारम्बार
क्यों रीते घर !
ताले गुलजार !!
खिसक रहा है पहाड़ !
क्यों दरक रहा है पहाड़ !!
चलते फौलादी औजार
निरंतर प्रहार !
झेलता बेबस पहाड़
क्रोधित शिव तांडव
विपदा बार-बार
निरीह बनते
प्रकोप के शिकार
फटते बादल
उफनती नदियां
गाड गधेरों में सैलाब
दरक रहा है पहाड़ !
हर तरफ चीख पुकार
भविष्य अंधकार
चहुँदिश हाहाकार
वातानुकूलित कक्षों में गोष्ठियां
सरकारी इमदाद बार बार
पीड़ित बेघर बेज़ार !
" कारिंदों " की चांदी हर बार
चर्चा वही बारम्बार
क्यों रीते घर !
ताले गुलजार !!
खिसक रहा है पहाड़ !
क्यों दरक रहा है पहाड़ !!
.... विजय जयाड़ा