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Friday, 10 June 2016

बदलते रिश्ते



|| बदलते रिश्ते ||

महानगरों में
शर्मसार करती
एक कवायद पर
आँखें पथरायी !!
मौसम से बेपरवाह
अपनी जवानी
जिसके लिए,
दुश्वार राहों पर गंवाई.
भविष्य की चिंता में , 
स्कूलों के दरवाज़ों पर
नौबत बजायी !!
वही बेटा ज़वानी के जोश में,
कुछ लोगों के बहकावे में.
रिश्तों की अर्थी निकालता,  
वृद्धाश्रम में बूढ़े
बापू का दाखिला करवाने.
खून के रिश्तों को
अनजानों को सौंपने , 
लक-धक् गाड़ी से उतरकर,
जुल्फों को संवारता,
बूढ़े बाप का हाथ पकड़कर  
बाप की पुरानी संदूकची को संभालता.
वृद्धाश्रम के ब
दरवाजे को खुलवाकर.
ढुलकते आंसुओं से बेपरवाह
न आह की उसे परवाह
जवानी के मद में चूर,
मगर  नहीं है मजबूर !!
बढ़ता ही गया !! बढ़ता ही गया !!!
लेकिन !!!
भविष्य दिख रहा है,
इतिहास दोहराता है खुद को !!
उसका बेटा भी ...
बेसब्र है दोहराने को !!
बूढ़े बाप के गिरते आंसुओं से बेपरवाह,
जवानी के मद में चूर,
मजबूत क़दमों से,
वो भी बढ़ता ही जायेगा  !! बढ़ता ही जाएगा !!!
ऐ दोस्त !! लौट आ  !!
बूढ़े दरख़्त के संग.
छाँव घनी न सही
पक्षियों का सहारा होगा
आँगन वीराना न होगा ..
^^ विजय  10.06.13

 

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