अमर बेल
अनंत विस्तार ले चुकी
धीरे-धीरे समाज को
खुद में समा चुकी
अमर बेल के करीब से
आज फिर____
गुजरना हुआ
उन्मादित है ! आह्लादित है !
प्रमादित है, अमर बेल !
हरियल पेड़ की
दरकार भी नहीं अब उसे !
जाति धर्म भाषा की
जहरीली लताएँ___
पोषित कर रही हैं अब उसे !
अदृश्य है अमूर्त है
अशांति आर्तनाद !
मासूमों की सिसकियाँ
अबलाओं का रुदन !!
उसका मूर्त रूप है
समाज के ऊपर
विस्तार ले रही है अमर बेल
उन्मादित है !____
आह्लादित है अमर बेल
समाज को जकड़ती
फिरकों में बांटतीं
विस्तार ले रही हैं___
अनेकों अमर बेल !
धीरे-धीरे समाज को
खुद में समा चुकी
अमर बेल के करीब से
आज फिर____
गुजरना हुआ
उन्मादित है ! आह्लादित है !
प्रमादित है, अमर बेल !
हरियल पेड़ की
दरकार भी नहीं अब उसे !
जाति धर्म भाषा की
जहरीली लताएँ___
पोषित कर रही हैं अब उसे !
अदृश्य है अमूर्त है
अशांति आर्तनाद !
मासूमों की सिसकियाँ
अबलाओं का रुदन !!
उसका मूर्त रूप है
समाज के ऊपर
विस्तार ले रही है अमर बेल
उन्मादित है !____
आह्लादित है अमर बेल
समाज को जकड़ती
फिरकों में बांटतीं
विस्तार ले रही हैं___
अनेकों अमर बेल !
..... विजय जयाड़ा