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Monday, 17 October 2016

अमर बेल


अमर बेल

अनंत विस्तार ले चुकी
धीरे-धीरे समाज को
खुद में समा चुकी

अमर बेल के करीब से
        आज फिर____
गुजरना हुआ
उन्मादित है ! आह्लादित है !
प्रमादित है, अमर बेल !
हरियल पेड़ की
दरकार भी नहीं अब उसे !
जाति धर्म भाषा की
     जहरीली लताएँ___
पोषित कर रही हैं अब उसे !
अदृश्य है अमूर्त है
  अशांति आर्तनाद !
मासूमों की सिसकियाँ
   अबलाओं का रुदन !!
उसका मूर्त रूप है
समाज के ऊपर
विस्तार ले रही है अमर बेल
         उन्मादित है !____
आह्लादित है अमर बेल
समाज को जकड़ती
फिरकों में बांटतीं
      विस्तार ले रही हैं___
अनेकों अमर बेल !
 
..... विजय जयाड़ा

Saturday, 1 October 2016

तन्हा दिल किससे कहे !



तन्हा दिल किससे कहे !
हर तरफ तन्हाइयों के मेले हैं
भीड़ बेशक साथ है मेरे
  मगर हम फिर भी अकेले हैं !!

हवाओं उन तलक मेरा
पैगाम पहुंचाना तुम जरूर
खुश हैं वो बेशक उधर बहुत
  हम महफ़िल में भी अकेले हैं !


शमा बुझ जाएगी जाने कब
रात फिर से ढ़लने को है
सुबह से पहले चले आओ तुम
  तब तक हम अकेले है !


अकेले न वापस आ जाना !
उनको साथ में लाना तुम
इंतज़ार में खड़े हैं हम
     इधर हम बिलकुल अकेले हैं !!
... विजय जयाड़ा