||अडिग पथिक||
लक्ष्य प्राप्ति की चाह मगर
असफलता की आह !!
उत्साह और श्रान्ति
साथ लेकर, साध लक्ष्य
ऊँचाइयों की चाह में अविराम बढ़ता
निरंतर एक पथिक...
थकता, ऊँचाइयों से हारता, मगर
तय ऊँचाइयों से निरंतर
ऊर्जा पाता एक पथिक...
दरकती एड़ियाँ, टपकता श्वेद
कभी अलसाता...
मंद बयार के आलिंगन से उत्साहित
लक्ष्य सम्मोहन में बंधा
निरंतर बढ़ता एक पथिक.....
लेकिन ये कैसी विडंबना !!!
घुमड़ती घटायें.. चमकती बिजलियाँ !!!
अँधियारा ही अंधियारा !! चौंध ही चौंध !!!
दिखता न मार्ग न कोई सहारा !!!
दृश्यमान, सिर्फ और सिर्फ...
उम्मीदों का दरकता पहाड़ !!
आशाओं पर गिरती बिजलियाँ
प्रारंभ किया था जहाँ से सफ़र
अंत वहीँ आ पहुंचता एक पथिक !!
गिर-गिर कर उठना नियति उसकी !!
नयी आस और अनुभवों से सज्जित
ऊंचाइयों को पाने की ललक में
फिर से सफ़र की तैयारी करता..
वो उत्साहित अडिग पथिक ....
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.. विजय जयाड़ा
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